Panchayat 4 Review: सचिव-रिंकी की धीमी लवस्टोरी, राजनीति का घमासान और फुलेरा में चुनावी संग्राम

Panchayat Season 4 का इंतजार खत्म हुआ! जानिए किसके हाथ लगे फुलेरा की प्रधानी की कुर्सी, और क्या हुआ सचिव जी और रिंकी के रिश्ते का? पढ़िए पूरी समीक्षा।
लखनऊ 24 जून 2025: अमेज़न प्राइम वीडियो की चर्चित वेब सीरीज़ ‘Panchayat’ के चौथे सीजन ने एक बार फिर से दर्शकों को फुलेरा गांव की गलियों में पहुंचा दिया है। जहां सीज़न 4 की कहानी सीधे वहीं से शुरू होती है, जहां पिछला सीजन खत्म हुआ था। प्रधानजी पर हुए हमले के बाद गांव की राजनीति में एक नई हलचल मची हुई है। इस बार गांव की प्रधान मंजू देवी (नीना गुप्ता) की कुर्सी को सीधा टक्कर दे रही हैं बनराकस की पत्नी क्रांति देवी (सुनीता राजवार)।
सच्चे ग्रामीण रंग में रंगी इस Panchayat सीरीज़ में दर्शकों को हास्य, राजनीति और रिश्तों का मिला-जुला मिश्रण देखने को मिला है। सचिव जी (जितेंद्र कुमार) एक ओर जहां अपने CAT के रिजल्ट का इंतज़ार कर रहे हैं, वहीं विधायक से हुई झड़प के चलते कानूनी पचड़े में भी फंसे हैं।
Panchayat 4 की कहानी: राजनीति, साजिश और ग्रामीण बयार
- प्रधानजी (रघुबीर यादव) पर गोली लगने के बाद गांव में डर और साजिशों का दौर शुरू हो गया है।
- सचिव जी के नाम पर केस दर्ज हो चुका है।
- फुलेरा में चुनाव का माहौल है और बनराकस की टीम अपनी चालों में कोई कसर नहीं छोड़ रही।
- विधायक (प्रकाश झा) खुलकर बनराकस एंड कंपनी का समर्थन कर रहे हैं।
- वहीं, प्रधानजी के साथ उनकी पुरानी टीम – रिंकी, विकास और प्रह्लाद चा मजबूती से खड़ी है।
रिंकी-सचिव की प्रेम कहानी: धीमी लेकिन गहरी
सचिव जी और रिंकी का रिश्ता धीरे-धीरे परवान चढ़ता दिखता है, लेकिन दर्शकों को जिस रोमांस की उम्मीद थी, वह इस सीजन में सीमित दिखाई देता है। एक कदम आगे बढ़ी प्रेम कहानी, पर अब भी बहुत कुछ अधूरा लगता है।
कलाकारों की अदाकारी: बिनोद ने चुराया शो
- अशोक पाठक (बिनोद) ने अपने किरदार में गजब की गहराई और इमोशन डाले हैं, विशेषकर अंतिम एपिसोड में उनका अभिनय काबिल-ए-तारीफ है।
- जितेंद्र कुमार, नीना गुप्ता, रघुबीर यादव, दुर्गेश कुमार, और प्रकाश झा समेत सभी कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों में जान डाली है।
- फैसल मलिक (प्रह्लाद चा) और चंदन रॉय (विकास) अपने पुराने रंग में हैं और दर्शकों को लगातार बांधे रखते हैं।
सीजन की कमजोरियां: कहानी में नई बात की कमी
जहां Panchayat सीजन 1 और 2 दर्शकों के दिल में उतर गए थे, वहीं सीजन 3 और 4 में कहानी राजनीतिक तकरार के इर्द-गिर्द सिमटी हुई नजर आती है। एक हद तक यह प्रेडिक्टेबल हो जाती है। शो का ह्यूमर पहले जैसा चुटीला नहीं है, लेकिन संवाद अब भी सटीक हैं।
Panchayat Season 4 क्यों देखें?
- साफ-सुथरी राजनीति और हल्का-फुल्का ग्रामीण ह्यूमर।
- अभिनय में कोई कमी नहीं है।
- रियल भारत की सच्ची तस्वीर पेश करता है।
- ग्रामीण राजनीति को हल्के-फुल्के अंदाज़ में दिखाया गया है।
कुल मिलाकर, Panchayat Season 4 फिर से वही फुलेरा लेकर आया है जिसे देखने के बाद शहर का शोर भी धीमा लगने लगता है और गांव की सियासत रोमांचक सी लगती है। मंजू देवी की ‘प्रधानी’ और क्रांति देवी की ‘क्रांति’ के बीच की टक्कर ने दर्शकों को ऐसा बांधा है कि अब अगले सीजन का इंतज़ार और भी मुश्किल हो जाएगा। रिंकी-सचिव जी की अनकही मोहब्बत, बनराकस की साजिशों और बिनोद के इमोशन्स के बीच ‘कुकर में लौकी पकाने’ वाला ये सीजन हमें फिर याद दिला गया कि Panchayat सिर्फ एक वेब सीरीज़ नहीं, बल्कि हर आम हिंदुस्तानी की दिल की बात है — वो भी देसी अंदाज़ में, बिना मसाले के भी स्वाददार!
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