Odisha Rathyatra 2025: जानिए भगवान जगन्नाथ के 12 प्रतीकात्मक घोड़े और 3 रस्सियों की महिमा

Odisha की जगन्नाथ रथयात्रा में तीन दिव्य रस्सियाँ (शंखचूड़, वासुकि, स्वर्णचूड़) और 12 प्रतीकात्मक घोड़े (शंख, बालाहक, आदि) की आध्यात्मिक महत्ता जानें। 2025 उत्सव की पूरी गाइड।
लखनऊ 30 जून 2025: Odisha के पुरी में भगवान जगन्नाथ की विश्वविख्यात रथयात्रा पिछले शुक्रवार (28 जून 2025) से शुरू हो चुकी है। इस पवित्र पर्व में असीम आस्था और सांस्कृतिक वैभव है; लाखों भक्त पुरी स्थित श्रीमंदिर के विशाल परिसर से निकलकर गुंडिचा मंदिर तक भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ खींचते हैं। यह यात्रा न केवल धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी गहरी महत्ता रखती है।
Odisha की जगन्नाथ रथयात्रा- तीन रथों पर कुल 12 प्रतीकात्मक घोड़े
रथयात्रा का अनूठा आकर्षण तीनों रथों पर सवार प्रतीकात्मक ‘घोड़े’ हैं, जो चार-चार स्वरूपों में विराजमान होते हैं:
- भगवान जगन्नाथ के रथ “नंदीघोष” पर सफेद चार घोड़े—शंख, बालाहक, श्वेत, हरिदाश्व—विराजते हैं।
- शंख शंख स्वरूप का प्रतीक, शुभारंभ की ऊर्जा को दर्शाता है।
- बालाहक शीघ्र कार्य पूर्ति का संकेत है।
- श्वेत की सौम्यता को दर्शाता है।
- हरिदाश्व संकटों का नाश करने वाला शक्ति रूप है।
- बलभद्र के रथ पर चार घोड़े—तीव्र (गति), घोर (परिवर्तन), दिघश्रमा (श्रम), स्वमनवा (आत्म‑नियंत्रण)—रथ रथयात्रा में उनकी महत्वाकांक्षी छवि को दर्शाते हैं।
- देवी सुभद्रा के रथ पर चार घोड़ियाँ—रोचिका (रुचि), मोचिका (मोक्ष), जीता (विजय), अपराजिता (अपराजिता शक्ति)—स्त्री शक्ति, बुद्धि और विजय का प्रतीक हैं।
यह कुल 12 दिव्य प्रतीक, रथयात्रा की आध्यात्मिक गहराई और ओडिशा की विरासत को दर्शाते हैं।
तीन रस्सियों की दिव्य कथाशक्ति
तीन प्रमुख रस्सियाँ—शंखचूड़, वासुकि और स्वर्णचूड़—भक्ति और मुक्ति की दिव्य कथाओं से जुड़ी हैं:
- शंखचूड़ रस्सी (जगन्नाथ रथ):
राक्षस शंखचूड़ ने भगवान जगन्नाथ से युद्ध के पश्चात रथ खींचने वाली रस्सी माँगी थी—आज भक्तों द्वारा इसे छूने मात्र से पापों की मोक्ष‑प्राप्ति की मान्यता है। - वासुकि रस्सी (बलभद्र रथ):
नागराज वासुकि की सेवा‑भावना से प्रेरित, यह रस्सी स्नेह और समर्पण का प्रतीक है। भक्त इसे खींचकर अपने जीवन में सौभाग्य और विजय प्राप्त करने की कामना करते हैं। - स्वर्णचूड़ रस्सी (सुभद्रा रथ):
यह दुनिया की मोह‑बंधनों को छोड़कर परमात्मा की ओर लौटने का संकेत है। भक्त इसे खींचकर आत्मा की मुक्ति की कामना करते हैं।
आयोजन और व्यवस्थाएँ
- रथयात्रा की शुरूआत गुरुवार शाम को बलभद्र के रथ से हुई, जबकि जगन्नाथ और सुभद्रा के रथ आज क्रमशः खींचे जाएंगे।
- भक्तों की भीड़ इतनी भारी थी कि 600 से अधिक श्रद्धालुओं को ठंड और गर्मी से संबंधित तकलीफों के चलते इलाज के लिए पुरी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया।
- 10,000 सुरक्षा कर्मी, CAPF की आठ कंपनियाँ और 275+ AI‑सक्षम सीसीटीवी लगाए गए हैं।
- ओडिशा मंत्री मुकेश महालिंग ने बताया कि यह घटना उमस और गर्मी के चलते हुई, लेकिन तुरंत प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों की स्थापना कर सतर्कता दिखायी गयी।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव
- भक्तों का मानना है कि शंखचूड़ रस्सी को छूने मात्र से जन्म कुंडली में कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है।
- झांझ, घंटियों और शंख की ध्वनि रथ को गूंजते हैं, जिससे “जय जगन्नाथ” और “हो भक्ते” की गूंज पुरी को गूँजा देती है।
- यह यात्रा 9 दिन तक चलती है, जिसके अंत में ‘बाहुदा रथयात्रा’ के दौरान भगवान श्रीमंदिर में वापिस आते हैं।
Odisha की यह पावन रथयात्रा न सिर्फ एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि मानवीय आस्था, मुक्ति‑प्राप्ति, और सांस्कृतिक एकता का भव्य प्रतीक भी है। हर वर्ष जैसे ही भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथों की झंकार सुनाई देती है, वैसे ही करोड़ों श्रद्धालुओं के हृदयों में भक्ति की लहर दौड़ जाती है।
पुरी की रथयात्रा, जिसे Divine Chariot Festival भी कहा जाता है, हर वर्ष Odisha की भूमि पर होने वाला वह अद्भुत (powerword) आयोजन है, जो धर्म और सांस्कृतिक चेतना को एक साथ जीवंत करता है। भगवान जगन्नाथ की यह यात्रा न केवल प्रतीकात्मक है, बल्कि आत्मा की परमात्मा से मिलने की गूढ़ प्रक्रिया का भी प्रतिनिधित्व करती है। पुरी की पावन धरती पर रथयात्रा के दौरान जो भक्ति, प्रेम और एकता का दृश्य उपस्थित होता है, वह अद्वितीय है। यहाँ जाति, भाषा, क्षेत्र या पंथ का कोई भेदभाव नहीं होता—हर कोई बस एक ही स्वर में बोलता है:
“जय जगन्नाथ!”
इस वर्ष की रथयात्रा भी भगवान के आशीर्वाद से न केवल पुरी को, बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष को शांति, श्रद्धा और ऊर्जा का संदेश देती है। भक्त जब शंखचूड़ रस्सी को छूते हैं, तब उन्हें यह अनुभव होता है कि वह स्वयं भगवान जगन्नाथ के निकट आ गए हैं। यह रस्सी केवल रथ की दिशा नहीं बदलती, बल्कि हज़ारों भक्तों के मन और आत्मा की दिशा भी मोक्ष की ओर मोड़ देती है।
Odisha की मिट्टी, जहां हर कण में भगवान का वास है, जहां हर ध्वनि “हरि बोल” से गूंजती है — वह हर वर्ष हमें ये याद दिलाती है कि भक्ति केवल एक भाव नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक दिव्य शैली है।
जय जगन्नाथ!
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