Nirjala Ekadashi 2025: जानें व्रत की तारीख, पूजा विधि, पारण समय और शुभ मुहूर्त

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Nirjala Ekadashi 2025 इस बार 6 जून को मनाई जाएगी। यह साल की सबसे कठिन एकादशी मानी जाती है। जानिए व्रत की पूजा विधि, पारण समय और दान का महत्त्व।

लखनऊ 1 जून 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार साल की सबसे कठिन लेकिन सबसे पुण्यदायी एकादशी Nirjala Ekadashi  आने वाली है। निर्जला एकादशी, जिसे सबसे कठिन लेकिन सबसे अधिक फलदायी व्रत माना जाता है, इस बार 6 जून 2025, शुक्रवार को मनाई जाएगी। यह व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसका पालन बिना जल ग्रहण किए किया जाता है, इसलिए इसे “निर्जला” कहा गया है।  

Nirjala Ekadashi की कथा का सार:

पांडवों में से भीमसेन को खाने-पीने का अत्यधिक शौक था और वह बहुत बलवान थे। अन्य पांडव भाई वर्षभर की सभी एकादशी व्रत रखते थे, लेकिन भीमसेन व्रत के दिन बिना भोजन किए नहीं रह पाते थे। उन्हें व्रत की शक्ति पर तो विश्वास था, लेकिन भूखे रहना उनके लिए कठिन था।

इस बात को लेकर भीम अत्यंत दुखी थे। उन्होंने एक दिन महर्षि वेदव्यास से निवेदन किया,
“हे गुरुदेव, मैं अन्य एकादशियों का व्रत नहीं रख पाता, परंतु मैं चाहता हूँ कि मुझे भी पुण्य प्राप्त हो। कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मैं एक ही दिन में सभी एकादशियों का फल प्राप्त कर सकूं।”

इस पर वेदव्यास जी ने कहा:
“हे भीम, यदि तुम साल में एक बार ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘निर्जला व्रत’ (बिना जल ग्रहण किए) कर सको, तो यह सभी एकादशियों के व्रत के समान पुण्यदायी होगा।”

वेदव्यास जी की बात मानकर भीमसेन ने अत्यंत कठिनता से यह व्रत किया। उन्होंने दिन भर बिना जल और अन्न ग्रहण किए, भगवान विष्णु की पूजा की और अगली सुबह व्रत का पारण किया। कहा जाता है कि इससे भीम को सभी एकादशियों का फल प्राप्त हुआ और वे अत्यंत प्रसन्न हुए इसीलिए इस निर्जला एकादशी को “भीमसेनी एकादशी” भी कहा जाता है।

पानी का विशेष दान

इस दिन गर्मी और प्यास को सहन करते हुए उपवास करना ही मुख्य तप माना जाता है। साथ ही, दान का विशेष महत्व होता है। विशेष रूप से जल से भरा मटका, छाता, वस्त्र, फल, मिठाई और पंखा दान करना अत्यंत पुण्यकारी होता है।

निर्जला एकादशी 2025 की तिथि व समय

  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 5 जून 2025 रात 11:22 बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त: 6 जून 2025 रात 9:49 बजे
  • पारण का समय (व्रत खोलना): 7 जून 2025 को सुबह 5:25 से 8:10 बजे तक

पूजा विधि

सुबह ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर व्रत का संकल्प लें व्रतधारी दिन भर अन्न, जल और फल तक नहीं लेते (निर्जल व्रत) भगवान विष्णु की पीले वस्त्रों, तुलसी, फूल और धूप-दीप से पूजा करें ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप करें शाम को आरती करें और भजन-कीर्तन करें अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत खोलें (पारण करें)

 इस कथा से यह सिद्ध होता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी कारणवश वर्षभर की 24 एकादशियों का पालन नहीं कर सकता, तो केवल निर्जला एकादशी व्रत पूरी श्रद्धा और नियमों से करने पर सभी एकादशियों के बराबर पुण्य प्राप्त कर सकता है। Nirjala Ekadashi सिर्फ व्रत नहीं, बल्कि संयम, सेवा और श्रद्धा का पर्व है। यह एक ऐसा अवसर है जब भक्त अपने मन, वाणी और कर्म को शुद्ध कर ईश्वर की भक्ति में लीन हो सकते हैं। यदि आप स्वास्थ्य कारणों से पूर्ण निर्जल व्रत नहीं कर सकते, तो फलाहार व्रत या जल ग्रहण कर भी इस पुण्य तिथि का लाभ ले सकते हैं।

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