NCRB के आंकड़े चौंकाने वाले: बच्चियों के खिलाफ अपराधों में 96.8% की बढ़ोतरी!

NCRB और CRY की रिपोर्टों के अनुसार, भारत में बच्चियों के खिलाफ अपराधों में चिंताजनक वृद्धि हुई है। 2016 से 2022 के बीच बलात्कार के मामलों में 96% की वृद्धि दर्ज की गई है। जानिये पूरी रिपोर्ट
लखनऊ 4 जून 2025: मुजफ्फरपुर की मासूम बच्ची के साथ हुई दरिंदगी का ज़ख्म अभी भर भी नहीं पाया था कि समस्तीपुर से एक और रूह कंपा देने वाली घटना सामने आ गई। बिहार में मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार और फिर बेरहमी से की गई हत्या ने इंसानियत को एक बार फिर शर्मसार कर दिया है। ये केवल अपराध नहीं, एक पूरी पीढ़ी की मासूमियत, उसका विश्वास और बचपन कुचलने वाली घटनाएं हैं पर सिर्फ बिहार ही नहीं जहां इस तरह की जघन्य घटनाएं हो रही, देश की कई राज्यों में इन घटनाओं का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े और चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) की रिपोर्ट इस संकट की भयावहता को दर्शाते हैं।
NCRB रिपोर्ट: बच्चियों के खिलाफ अपराधों में चिंताजनक वृद्धि
NCRB के अनुसार, 2016 से 2022 के बीच बच्चियों के साथ बलात्कार के मामलों में 96% की वृद्धि दर्ज की गई है। 2022 में ऐसे 38,911 मामले सामने आए, जबकि 2016 में यह संख्या 19,765 थी। इस वृद्धि के पीछे जागरूकता और रिपोर्टिंग में सुधार एक कारण हो सकता है, लेकिन यह भी दर्शाता है कि बच्चियों की सुरक्षा एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है।
राज्यवार स्थिति: मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सबसे अधिक मामले
2022 में बच्चियों के साथ बलात्कार के बाद हत्या के मामलों में मध्य प्रदेश सबसे आगे रहा, जहां 18 मामले दर्ज किए गए। इसके बाद महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में 14-14 मामले सामने आए। गुजरात में 7, हरियाणा में 6 और छत्तीसगढ़ में 5 मामले दर्ज किए गए।
फास्ट ट्रैक अदालतें: न्याय में तेजी की आवश्यकता
सरकार ने निर्भया फंड के तहत देशभर में बलात्कार और पॉक्सो एक्ट के मामलों के त्वरित निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक अदालतों की स्थापना की है। 31 अक्टूबर 2024 तक, 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ऐसी 750 अदालतें स्थापित की गई थीं, जिनमें से 408 विशेष पॉक्सो अदालतें थीं। इन अदालतों में अब तक 2,87,000 से अधिक मामलों का निपटारा किया गया है।
CRY की रिपोर्ट: बच्चियों की सुरक्षा में सुधार की आवश्यकता
CRY की रिपोर्ट के अनुसार, 2006 में बच्चियों के खिलाफ अपराधों के 18,967 मामले दर्ज किए गए थे, जो 2016 में बढ़कर 1,06,958 हो गए। यह वृद्धि दर्शाती है कि बच्चियों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
बिहार की हालिया घटनाएं और NCRB तथा CRY की रिपोर्टें स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं कि बच्चियों के खिलाफ अपराधों में वृद्धि हो रही है। हालांकि रिपोर्टिंग में सुधार हुआ है, लेकिन यह भी आवश्यक है कि समाज में बच्चियों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए और न्याय प्रणाली को और प्रभावी बनाया जाए।
सबसे दुखद बात यह है कि यह दर्द सिर्फ बिहार का नहीं है — पूरे देश में बच्चियों के साथ हैवानियत के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे। हर बार एक माँ की गोद सूनी होती है, हर बार एक परिवार बिखर जाता है… और हर बार समाज कुछ पल दुख जताकर फिर चुप हो जाता है।
इन घटनाओं ने एक बार फिर सवाल खड़ा किया है—क्या हम अपने बच्चों को सुरक्षित भविष्य देने में नाकाम हो रहे हैं?
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