कांग्रेस की भगवा आतंकवाद की साजिश Fail: 2008 मालेगांव विस्फोट के सभी लोग बरी !

2008-2011 के बीच संप्रग सरकार(CongressConspiracy) ने भगवा आतंकवाद(SaffronTerror) की कहानी गढ़ने की कोशिश की। जानें कैसे साध्वी प्रज्ञा, मालेगांव और अजमेर धमाकों को जोड़ा गया। #SaffronTerror #CongressConspiracy
भगवा आतंकवाद की साजिश: संप्रग सरकार का बड़ा खेल
नई दिल्ली 31 july : 2008 से 2011 के बीच संप्रग सरकार के कार्यकाल में भगवा आतंकवाद की कहानी गढ़ने की एक बड़ी साजिश रची गई थी। इस दौरान मालेगांव धमाके (2008) में साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी के बाद 2007 के समझौता एक्सप्रेस, अजमेर दरगाह और हैदराबाद की मक्का मस्जिद धमाकों की जांच को नए सिरे से खोला गया। इन सभी मामलों को हिंदू आतंकवाद से जोड़ने की कोशिश हुई, लेकिन अदालत ने एक-एक कर सभी आरोपियों को बरी कर दिया।
कांग्रेस का ‘SaffronTerror’ नैरेटिव
2013 में कांग्रेस के जयपुर अधिवेशन में तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने पहली बार ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द का इस्तेमाल किया। यह शब्द उस समय चर्चा में आया जब कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने 26/11 मुंबई हमले को आरएसएस और इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद की साजिश बताने वाली किताब के विमोचन में हिस्सा लिया।
मुंबई 26/11 हमले और कलावा कनेक्शन
23 अक्टूबर 2008 को साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी के ठीक एक महीने बाद 26 नवंबर को मुंबई पर हमला हुआ। लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने हाथों पर कलावा बांध रखा था। अगर अजमल कसाब जिंदा न पकड़ा गया होता, तो इस हमले को भी हिंदू आतंकवाद से जोड़ने की कोशिश हो सकती थी।
इशरत जहां केस: आतंकियों को क्लीन चिट देने की कोशिश
अहमदाबाद में इशरत जहां और तीन अन्य आतंकियों की एनकाउंटर के बाद गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर उन्हें लश्कर से जुड़ा बताया था। लेकिन पी. चिदंबरम के हस्तक्षेप के बाद हलफनामे को बदलकर कहा गया कि उनके आतंकी होने के सबूत नहीं हैं। इसके बाद सीबीआई ने खुफिया अधिकारी राजेंद्र कुमार के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी, जिसे तत्कालीन गृह सचिव आरके सिंह ने खारिज कर दिया।
अजमेर धमाका: आरएसएस और मोहन भागवत को फंसाने की साजिश
अजमेर शरीफ धमाके (2007) में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार को फंसाने की भी कोशिश की गई। आरोपियों ने मजिस्ट्रेट के सामने धारा 164 का बयान दर्ज कराया था, जिसमें दावा किया गया कि धमाके की योजना बनाने वाली बैठक में भागवत और इंद्रेश शामिल थे। हालांकि, बाद में यह केस भी ढह गया।
संप्रग सरकार के दौरान हिंदू आतंकवाद का नैरेटिव गढ़ने की कोशिश हुई, लेकिन अदालतों ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। मालेगांव, अजमेर और इशरत जहां मामलों में सच्चाई सामने आने के बाद यह साफ हो गया कि यह एक राजनीतिक साजिश थी।
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