Census 2025: 1931 के बाद भारत की पहली डिजिटल और जातिगत जनगणना शुरू, जानिए पूरी प्रक्रिया

भारत में 2025 से शुरू हो रही नई जनगणना (Census) प्रक्रिया में पहली बार जातिगत जनगणना भी शामिल होगी। यह दो चरणों में पूरी होगी और 21 महीनों तक चलेगी। जानिए इससे जुड़ी हर अहम जानकारी।
लखनऊ 16 जून 2025: भारत में जनगणना (Census) 2025 की औपचारिक शुरुआत हो गई है। गृह मंत्रालय ने जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत अधिसूचना जारी कर दी है, जिससे जनगणना और जातिगत जनगणना एक साथ कराने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
यह पहली बार होगा जब भारत में जातिगत जनगणना को आधिकारिक तौर पर जनगणना का हिस्सा बनाया गया है, और इसे पूरी तरह डिजिटल प्रोसेस के माध्यम से संपन्न किया जाएगा।
Census 2025: दो चरणों में पूरी होगी प्रक्रिया
- पहला चरण:
- हाउसिंग सेंसस (Housing Census)
- पूरा होगा: अक्टूबर 2026 तक
- विशेष क्षेत्र: जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड आदि में पहले पूरा किया जाएगा।
- दूसरा चरण:
- पॉपुलेशन सेंसस (Population Census)
- पूरा होगा: मार्च 2027 तक
- 1 मार्च 2027 की मिड नाइट को रेफरेंस डेट माना जाएगा।
जनगणना में शामिल होंगे ये डेटा:
- आवासीय स्थिति, पेयजल, शौचालय, बिजली, वाहन, संपत्ति
- व्यक्तिगत जानकारी: नाम, उम्र, लिंग, वैवाहिक स्थिति, शिक्षा, रोजगार
- जाति, उप-जाति, धर्म, प्रवास, NPR से जुड़ी जानकारी
इस बार के Census में लगभग 34 लाख कर्मचारी भाग लेंगे, जिन्हें डिजिटल ट्रेनिंग दी जाएगी। प्रोसेस में मोबाइल ऐप, सॉफ्टवेयर कॉलम, और Self-Enumeration की सुविधा भी होगी।
जातिगत जनगणना: 1931 के बाद पहली बार
- SC, ST, OBC और सामान्य वर्ग की सभी जातियों की गणना की जाएगी
- सामाजिक-आर्थिक डेटा: आय, शिक्षा, रोज़गार जैसे पैरामीटर्स दर्ज किए जाएंगे
- यह डेटा भविष्य में आरक्षण, योजनाओं और संसाधन वितरण में अहम भूमिका निभाएगा
- वित्त आयोग राज्यों को अनुदान तय करने में इसका उपयोग करेगा
राजनीतिक असर और सीटों का परिसीमन:
जनगणना के बाद 2028 तक परिसीमन आयोग का गठन संभव है, जिससे लोकसभा और विधानसभा सीटों का नए सिरे से बंटवारा किया जाएगा।
- दक्षिणी राज्यों को इस पर चिंता है क्योंकि उनकी जनसंख्या में अपेक्षाकृत वृद्धि कम रही है।
- वहीं, 33% महिला आरक्षण को लागू करने की प्रक्रिया भी इसी के आधार पर शुरू हो सकती है।
जनगणना की भूमिका क्यों महत्वपूर्ण है?
जनगणना न सिर्फ एक संख्या गिनती की प्रक्रिया है, बल्कि ये तय करती है:
- किन इलाकों को ज्यादा सरकारी फंड मिलेंगे
- कहां बनेगी नई सड़कें, अस्पताल, स्कूल
- किस क्षेत्र की जनसंख्या बढ़ी है, और वहां नए संसाधन भेजे जाएं
- किस राज्य को लोकसभा में कितनी सीटें मिलेंगी
- सामाजिक योजनाएं, जैसे कि गरीबी उन्मूलन, शिक्षा सुधार, या आवास योजना, कहां और कैसे लागू होंगी
Census 2025: अब घर बैठे भी दें जानकारी
पहली बार भारत में जनगणना डिजिटल रूप से भी की जा रही है। नागरिकों को एक मोबाइल ऐप और वेबसाइट पोर्टल के माध्यम से Self Enumeration यानी स्व-गणना का विकल्प मिलेगा।
- इससे वे अपना और अपने परिवार का डाटा खुद दर्ज कर सकते हैं
- ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां डिजिटल साक्षरता कम है, वहां गणनाकारों की मदद से यह प्रक्रिया करवाई जाएगी
- हर राज्य की स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध प्रश्नावली होगी, जिससे समझने और जवाब देने में आसानी होगी
आलोचना और चुनौतियां भी कम नहीं
- कई राजनीतिक दलों ने चिंता जताई है कि जातिगत डेटा को सरकारें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकती हैं
- कुछ संगठनों को डर है कि इससे जातिवाद को और बढ़ावा मिलेगा
- दक्षिणी राज्य इस बात से चिंतित हैं कि लोकसभा सीटों में उनकी हिस्सेदारी घट सकती है, जबकि उन्होंने परिवार नियोजन और विकास में अग्रणी भूमिका निभाई है
जातिगत जनगणना: राजनीतिक समीकरण बदलने की शुरुआत
- साल 1931 में ब्रिटिश राज में आखिरी जातिगत जनगणना हुई थी
- तब से अब तक समाज, शिक्षा, रोजगार और आर्थिक स्थिति में भारी बदलाव आ चुका है
- OBC आरक्षण की समीक्षा, SC-ST डेटा की पुनः पुष्टि और सामान्य वर्ग की सामाजिक स्थिति को समझने के लिए यह कदम अहम माना जा रहा है
- जातिगत डेटा के आधार पर भविष्य में नए आरक्षण मानदंड, अर्थव्यवस्था में भागीदारी, और सामाजिक योजनाओं का नया खाका तैयार हो सकता है
Census 2025 न केवल भारत की जनसंख्या और सामाजिक-आर्थिक स्थिति का सबसे बड़ा डाटाबेस तैयार करेगा, बल्कि आरक्षण नीति, संसाधन वितरण और राजनीतिक प्रतिनिधित्व जैसे फैसलों में भी निर्णायक भूमिका निभाएगा।
1931 के बाद पहली जातिगत जनगणना, और पहली डिजिटल प्रोसेस आधारित जनगणना – दोनों ही बदलाव भारत को एक नई प्रशासनिक दिशा में ले जाएंगे।
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