26/11 मुंबई हमले में तहव्वुर राणा की भारत को प्रत्यर्पण पर फिर से मुकदमा क्यों? जानिए अमेरिका और भारत के आरोपों का फर्क | ISI और लश्कर कनेक्शन पर बड़ा खुलासा संभव!

26/11 मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा को अमेरिका से भारत प्रत्यर्पित किए जाने के बाद एक बड़ा सवाल सामने आया है — जब राणा पहले ही अमेरिका में सजा काट चुका है, तो भारत में उस पर दोबारा मुकदमा क्यों चलाया जा रहा है?
इस सवाल का जवाब अमेरिका और भारत में राणा पर लगाए गए आरोपों के बुनियादी फर्क में छिपा है।
पाकिस्तान में जन्मे, कनाडाई नागरिक और पाकिस्तानी सेना के पूर्व डॉक्टर तहव्वुर राणा को 2009 में अमेरिका में गिरफ्तार किया गया था। 2011 में अमेरिकी अदालत ने उसे लश्कर-ए-तैयबा (LeT) को समर्थन देने और डेनमार्क में एक नाकाम आतंकी साजिश में शामिल होने का दोषी ठहराया। लेकिन उस समय उसे मुंबई हमलों में प्रत्यक्ष भागीदारी के आरोपों से बरी कर दिया गया था। राणा ने अमेरिका की जेल में 14 साल की सजा काटी और 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य के आधार पर रिहा कर दिया गया।
भारत का मामला क्यों है अलग?
भारत ने राणा के खिलाफ एक अलग और अधिक व्यापक मामला तैयार किया, जो सीधे 26/11 के मुंबई हमलों से जुड़ा हुआ है। इस भयावह हमले में 170 से अधिक लोग मारे गए थे।
अमेरिका में राणा पर आतंकवाद को समर्थन देने के आरोप थे, जिनमें मुंबई हमले के लिए कोई ठोस साक्ष्य सामने नहीं आया था। अमेरिका में उसका केस मुख्य रूप से उसकी इमिग्रेशन कंपनी “फर्स्ट वर्ल्ड इमिग्रेशन सर्विसेज” के दुरुपयोग से जुड़ा था, जिसके जरिए डेविड हेडली को फर्जी दस्तावेज़ और कवर उपलब्ध कराया गया था।
हालांकि, भारतीय एजेंसियों ने राणा पर युद्ध छेड़ने, आपराधिक साजिश और आतंकवादी गतिविधियों में सीधी भागीदारी जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। यही वजह रही कि भारत को अमेरिका से राणा का प्रत्यर्पण करवाने में सफलता मिली।
अमेरिका में राणा की अंतिम अपील भी खारिज
4 अप्रैल 2025 को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने राणा की प्रत्यर्पण के खिलाफ अंतिम अपील को खारिज कर दिया, जिससे भारत लाकर उस पर मुकदमा चलाने का रास्ता साफ हो गया। इस फैसले ने यह भी दिखा दिया कि आतंकवाद के मामलों में अमेरिका और भारत की रणनीति अलग हो सकती है, लेकिन गंभीरता और कार्रवाई में दोनों देश एकमत हैं।
भारत के लिए कूटनीतिक जीत और नई उम्मीदें
राणा का प्रत्यर्पण भारत के लिए न केवल एक कूटनीतिक सफलता है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ सहयोग की मिसाल भी पेश करता है।
अब जब राणा भारत में है, उससे पूछताछ के ज़रिए आईएसआई और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों की भूमिका का और खुलासा हो सकता है। इससे लंबे समय से चल रही 26/11 की जांच को नए सिरे से दिशा मिल सकती है, और अन्य दोषियों तक भी पहुंचने में मदद मिल सकती है।