Big Breaking: शिबू सोरेन का निधन; ‘दिशोम गुरु’ की 60 साल की संघर्षपूर्ण यात्रा का अंत

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक संरक्षक शिबू सोरेन का 81 वर्ष की आयु में निधन। जानें उनके जीवन, संघर्ष, राजनीतिक यात्रा और अंतिम यात्रा की पूरी जानकारी।
लखनऊ 4 अगस्त 2025: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक संरक्षक शिबू सोरेन का सोमवार को निधन हो गया। 81 वर्षीय सोरेन लंबे समय से बीमार चल रहे थे और दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।
अस्पताल प्रशासन के मुताबिक, सोमवार सुबह 8:56 बजे उन्हें मृत घोषित किया गया। वे किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे और करीब डेढ़ महीने पहले उन्हें स्ट्रोक भी हुआ था। पिछले एक महीने से वे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे।
अंतिम यात्रा और श्रद्धांजलि
- सोमवार शाम 6 बजे उनका पार्थिव शरीर रांची लाया जाएगा।
- सबसे पहले पार्थिव शरीर को मोरहाबादी स्थित आवास में रखा जाएगा।
- मंगलवार सुबह झामुमो पार्टी कार्यालय में अंतिम दर्शन के लिए आम जनता के लिए रखा जाएगा।
- इसके बाद झारखंड विधानसभा में जनप्रतिनिधि और अधिकारी श्रद्धांजलि देंगे।
- अंतिम संस्कार मंगलवार दोपहर 3 बजे उनके पैतृक गांव नेमरा, रामगढ़ में होगा।
हेमंत सोरेन का भावुक संदेश

झारखंड के मुख्यमंत्री और उनके पुत्र हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा —
“आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं…”
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने जताया शोक

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश के कई दिग्गज नेताओं ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया। सभी ने उन्हें आदिवासी अधिकारों के सशक्त नेता और झारखंड आंदोलन के प्रणेता के रूप में याद किया।
शिबू सोरेन का संघर्ष और प्रेरणा से भरा जीवन
प्रारंभिक जीवन
- जन्म: 11 जनवरी 1944
- स्थान: नेमरा गांव, रामगढ़ जिला, झारखंड
- बचपन से ही उन्होंने आदिवासी समुदाय के शोषण, अन्याय और समस्याओं को करीब से महसूस किया।
संघर्ष की शुरुआत
1960 के दशक में उन्होंने जल, जंगल, जमीन के अधिकारों की लड़ाई शुरू की।
1970 के दशक में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य अलग झारखंड राज्य की मांग और आदिवासी अधिकारों की रक्षा करना था।
राजनीतिक सफर
लोकसभा में शुरुआत
- 1980: पहली बार लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए।
- संसद में उन्होंने लगातार आदिवासी मुद्दों को प्रमुखता से उठाया।
झारखंड राज्य का गठन
- लंबे संघर्ष के बाद 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य का गठन हुआ।
- इसमें उनकी भूमिका बेहद अहम रही।
मुख्यमंत्री कार्यकाल
- 2005, 2008 और 2009 में झारखंड के मुख्यमंत्री बने।
- राजनीतिक अस्थिरता के कारण कार्यकाल लंबा नहीं चला, लेकिन उन्होंने कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं।
आदिवासी हितों के लिए योगदान
- आदिवासी जमीन की सुरक्षा के लिए कई कानून बनाने में भूमिका निभाई।
- ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार पर जोर दिया।
- परंपरागत संस्कृति और लोककला के संरक्षण के लिए प्रयास किए।
विवाद और चुनौतियां
उनके राजनीतिक करियर में कई उतार-चढ़ाव आए।
- भ्रष्टाचार और हत्या जैसे गंभीर आरोप लगे।
- कई मामलों में उन्हें जेल भी जाना पड़ा, लेकिन बाद में कई आरोपों से वे बरी हो गए।
इसके बावजूद, वे हमेशा आदिवासी जनता के ‘दिशोम गुरु’ बने रहे।
शिबू सोरेन की व्यक्तिगत जीवन और छवि
- सादा जीवन जीने वाले नेता के रूप में प्रसिद्ध।
- जनसंपर्क में गहरी पकड़ और ग्रामीण जनता में गहरा विश्वास।
- झारखंड आंदोलन के प्रतीक और आदिवासी अस्मिता के प्रबल समर्थक।
शिबू सोरेन — आदिवासी अस्मिता, राजनीतिक विरासत और जीवन का सामाजिक प्रभाव

शिबू सोरेन सिर्फ एक राजनेता नहीं थे — वे आदिवासी अधिकारों और एक अलग पहचान की लड़ाई में जीवन समर्पित करने वाले एक आदर्श नेता थे। उनके संघर्ष ने झारखंड से परे, पूरे भारत में आदिवासी समाज और ग्रामीण अस्मिता को एक वैश्विक पहचान दिलाई। उनके आदर्शों में शिक्षा-साक्षरता, मूलभूत मानवाधिकार और स्थानीय संसाधनों का न्यायपूर्ण विभाजन जैसे मुद्दे प्रमुख थे। झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना सिर्फ राजनीतिक प्लेटफॉर्म नहीं थी, बल्कि यह झारखंड आंदोलन की जनजागरण प्रक्रिया का केंद्र थी, जिसने आदिवासी युवाओं को संगठित किया, उन्हें सशक्त बनाया और आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी।
उन्होंने जहाँ विधानसभा और संसद में आदिवासी एवं ग्रामीण समस्याओं को आवाज़ दी, वहीं पंचायत-स्तर से लेकर राज्य स्तरीय शासन तक उनकी संस्था ने विकास की योजनाएं लागू कीं—विशेषकर शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, कृषि समर्थन योजनाओं में। उनके नेतृत्त्व में झारखंड में पहली बार आदिवासी बच्चियों के लिए छात्रावास, आदिवासी किसानों के लिए नकदी समर्थन, महिला समूहों को स्व-सहायता समूहों के रूप में संगठित करना, स्थानीय भाषाओं में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था और आदिवासी कला-लोकसंग्रह के संधारण सहित कई पहल हुई।
राजनीतिक रूप से कठिन दौरों में भी शिबू सोरेन ने निरंतर समाज से जुड़े रहने की कला दिखाई। जेल में रहने के बावजूद उनकी लोकप्रियता में कमी नहीं आई—बल्कि आदिवासी जनमानस में वह ‘मसीहा’ बन गए। वे सामाजिक आयोजनों, उत्सवों, श्रद्धांजलियों और आदिवासी मेलों में स्वयं उपस्थित रहते, जिससे जनता के साथ उनका सीधा संपर्क बना रहता था। उनके सरल जीवनशैली—पगडंडी मार्ग से गांव-गांव तक चलकर लोगों से मिलना, उनकी समस्याएँ सुनना, और समाधान के लिए विधानसभा या लोकसभा में आवाज उठाना—आज भी आदिवासियों में प्रेरणा का स्रोत है। उनके जीवन का मूल मंत्र था: “धरती के पुत्रों को उनकी धरती का हक दिलाना”।
शिबू सोरेन के विवाद और आरोप—चाहे वह भ्रष्टाचार के मामलों में नाम जुड़ना हो या मुम्बई जैसी उच्च न्यायालयों तक की जांच—उनकी लोकप्रियता पर असर नहीं डाल सके। नजदीकी स्रोत बताते हैं कि वे खुद इन आरोपों को “राजनीति की कीमत” मानते थे, और बार-बार कहते कि “मैंने कभी अपना उद्देश्य—आदिवासियों की रक्षा—ना छोड़ा, ना छोडूंगा।” जब उनमें उम्र और स्वास्थ्य दोनों बाधाएँ आईं, तब भी उन्होंने लोकसभा और विधानसभा में जनहित के मुद्दों की लड़ाई जारी रखी, इधर-अधर की सांसारिक राजनीति से अलग, वे जारी रखे रहे झारखंड मुक्ति आंदोलन की नींव।
शिबू सोरेन के निधन के समय जनसमूह में मिली चिंता यह थी कि अब कौन उनका स्थान लेगा? कई आदिवासी युवाओं, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और राजनीतिक अनुयायियों ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी तरह एक कार्मिक और नैतिक नेतृत्व विरासत में कम ही मिलता है। हालांकि उनके पुत्र हेमंत सोरेन ने पिता की राजनीतिक विरासत संभाली, लेकिन सच्ची चुनौती थी ‘दिशोम गुरु’ जैसे गुणातीत आदर्श—उनका संयम, उनका त्याग, उनका जनसत्ता से जोड़ना, उनका आदिवासियों के स्वाभिमान को ऊँचा करना—इन्हें बनाए रखना।
समाज के दूरदराज घटकों तक शिबू सोरेन की नीतियों और संदेशों का प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। वनवासी महिलाओं के समूह, युवा आदिवासी छात्र मंडल, ग्रामीण शैक्षणिक संस्थाएं—इन सबका मॉडल JMM के आदर्शों पर ही खड़ा है। विपक्ष और समर्थक दोनों यात्रा उनके जीवन को आदिवासी पहचान और सामाजिक न्याय से जोड़ते हैं। अंततः शिबू सोरेन केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि आदिवासी अधिकार, सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय की भावना थे, जिन्हें “दिशोम गुरु” कहा जाना जन्मसिद्ध सम्मान था। उनका निधन एक युग का अंत है, लेकिन उनकी बात, उनकी प्रेरणा, उनका संदेश — यही उनके द्वारा बनाई गई सबसे मजबूत विरासत है जो आने वाले कई वर्षों तक असर रखेगी।
झारखंड और देश के लिए प्रेरणा

शिबू सोरेन का जीवन संघर्ष, त्याग और सेवा की मिसाल है। उनका निधन केवल झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ी क्षति है।
शिबू सोरेन ने अपने जीवन में न सिर्फ राजनीतिक उपलब्धियां हासिल कीं, बल्कि झारखंड और देश के आदिवासी समाज को पहचान और अधिकार दिलाने में अहम भूमिका निभाई। वे जीवन भर संघर्ष करते रहे और अंत तक आदिवासी जनता के सच्चे प्रहरी बने रहे। उनका नाम हमेशा ‘दिशोम गुरु’ के रूप में याद किया जाएगा।
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