कजरी तीज 2025: शिव-पार्वती के मिलन का पावन पर्व, जानें तिथि, मुहूर्त, पूजन विधि और महत्व

Share the News
कजरी तीज

कजरी तीज 2025 का पावन पर्व 12 अगस्त को मनाया जाएगा। जानें इसकी तिथि, शुभ योग, पूजा विधि, व्रत नियम और पारंपरिक महत्व। विवाहित और अविवाहित महिलाओं के लिए खास महत्व।

लखनऊ 7 अगस्त 2025: कजरी तीज हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना को समर्पित है और उनके मिलन का प्रतीक माना जाता है। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत करती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएं मनचाहा जीवनसाथी पाने की कामना से यह व्रत रखती हैं।

कजरी तीज 2025 की तिथि और समय:

  • तिथि आरंभ: 11 अगस्त 2025, सुबह 10:33 बजे
  • तिथि समाप्त: 12 अगस्त 2025, सुबह 8:40 बजे
  • उदयातिथि के अनुसार पर्व: 12 अगस्त 2025

कजरी तीज 2025 के विशेष शुभ योग

इस वर्ष कजरी तीज पर सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है, जो इसे और भी शुभ बनाता है।

  • सर्वार्थ सिद्धि योग: 12 अगस्त, सुबह 11:52 बजे से 13 अगस्त, सुबह 5:49 बजे तक
    इस दौरान माता पार्वती की पूजा करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।

कजरी तीज पूजन विधि (Kajari Teej Pujan Vidhi)

कजरी तीज पर महिलाएं कठोर निर्जला व्रत रखती हैं, जिसे तोड़ने से पहले वे माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं। शाम को महिलाएं एकत्र होकर पारंपरिक रीति-रिवाज से पूजन करती हैं।

पूजा विधि के प्रमुख चरण:

  1. सुबह स्नान कर स्वच्छ और पारंपरिक वस्त्र धारण करें।
  2. पूजन स्थल को साफ करें और नीम के पेड़ या उसकी डाली को सजाएं।
  3. पूजा में कुमकुम, हल्दी, चावल, मेहंदी, फूल, फल और मिठाई का प्रयोग करें।
  4. माता पार्वती को 16 श्रृंगार अर्पित करें — सिंदूर, चूड़ियां, बिंदी, कंघी, दर्पण, चुनरी आदि।
  5. श्रृंगार का महत्व — माना जाता है कि इस दिन विवाहित महिलाएं 16 श्रृंगार करके पूजा करें तो अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  6. संध्या समय महिलाएं समूह में कजरी तीज की कथा सुनती हैं।
  7. कुछ स्थानों पर चंद्रमा को अर्घ्य देकर, सत्तू या फल ग्रहण कर व्रत का पारण किया जाता है।

माता पार्वती को अर्पित की जाने वाली विशेष वस्तुएं

कजरी तीज

कजरी तीज के दिन यदि माता पार्वती को निम्न वस्तुएं अर्पित की जाएं तो विशेष कृपा प्राप्त होती है:

  • सिंदूर और कुमकुम
  • चूड़ियां और बिछुआ
  • हरी साड़ी
  • दर्पण, कंघी, इत्र
  • चुनरी और मेहंदी

कजरी तीज पूजा के विशेष मुहूर्त

  • ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:23 से 5:06 बजे
  • विजय मुहूर्त: दोपहर 2:38 से 3:31 बजे
  • गोधूलि मुहूर्त: शाम 7:03 से 7:25 बजे
  • निशिता काल मुहूर्त: रात 12:05 से 12:48 बजे

कजरी तीज का सांस्कृतिक और पौराणिक महत्व

कजरी तीज

कजरी तीज को कज्जली तीज या सातुड़ी तीज भी कहा जाता है। इसकी जड़ें पौराणिक कथाओं में गहराई से जुड़ी हैं।

कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। वर्षों की कठिन तपस्या के बाद शिवजी ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से यह पर्व विवाहित और अविवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य और प्रेम का प्रतीक बन गया।

कजरी तीज के लोकगीत और नृत्य

ग्रामीण इलाकों में महिलाएं इस दिन लोकगीत गाती हैं और झूले झूलती हैं

  • महिलाएं मेहंदी रचाकर, हरे और पीले रंग के पारंपरिक वस्त्र पहनती हैं।
  • ‘कजरी गीत’ में विरह, प्रेम और सावन की सुंदरता का चित्रण होता है।
  • कुछ जगहों पर महिलाएं ढोलक की थाप पर नृत्य करती हैं।

कजरी तीज व्रत के स्वास्थ्य और मानसिक लाभ

  1. व्रत से शरीर में अनुशासन और आत्मसंयम का विकास होता है।
  2. मानसिक एकाग्रता बढ़ती है और तनाव कम होता है
  3. पारिवारिक संबंधों में मजबूती आती है।
  4. आध्यात्मिक दृष्टि से, व्रत व्यक्ति में धैर्य और भक्ति का संचार करता है।

कजरी तीज के क्षेत्रीय रीति-रिवाज: राज्यों में अलग-अलग रंग

1. उत्तर प्रदेश में कजरी तीज का रंग:
पूर्वांचल (वाराणसी, गाजीपुर, मिर्जापुर, भदोही, जौनपुर) में कजरी तीज एक सांस्कृतिक उत्सव बन चुकी है। यहाँ महिलाएं मिट्टी से बने शिव-पार्वती की मूर्ति की पूजा करती हैं। ‘कजली गीत’ की गूंज गलियों में सुनाई देती है — “सावन में झूला पड़े, रिमझिम बूँदें बरसे…” जैसे गीतों से वातावरण भक्तिमय हो जाता है।

2. मध्य प्रदेश में तीज का पारंपरिक स्वरूप:
बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्रों में महिलाएं पारंपरिक पोशाक पहनकर मंदिरों में जाती हैं, व्रत करती हैं और झूला झूलती हैं। यहां कजरी लोकगीतों में कृष्ण-राधा के मिलन की बात होती है।

3. राजस्थान में लोकनृत्य और तीज यात्रा:
राजस्थान के कोटा, बूंदी, जयपुर में कजरी तीज बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। महिलाएं “घूमर” नृत्य करती हैं और तीज माता की शोभायात्रा निकाली जाती है। कुछ क्षेत्रों में “हरियाली तीज” के बाद “कजरी तीज” को विशेष रूप से पतियों की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है।

इतिहास और लोककथाएं: कजरी गीतों की उत्पत्ति

कजरी गीतों की जड़ें:
‘कजरी’ शब्द ‘काजल’ से लिया गया है, जिसका मतलब है काले बादल। यह गीत वर्षा ऋतु की उमंग, प्रेम और विरह को दर्शाते हैं। कजरी गीतों का सबसे प्रसिद्ध केंद्र “मिर्जापुर” है, जहाँ से ये लोकगीत देशभर में फैले।

पौराणिक पृष्ठभूमि:
मान्यता है कि कजरी तीज के दिन माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था। इस व्रत को स्त्रियां उसी संकल्प के साथ रखती हैं — एकनिष्ठ प्रेम, समर्पण और पावनता का प्रतीक।

कृष्ण-राधा संदर्भ:
ब्रज क्षेत्र में कजरी गीतों को राधा-कृष्ण की लीलाओं से जोड़ा जाता है, जहाँ राधा जी कृष्ण के विरह में कजरी गाती हैं। यह प्रेम का लोकपरक चित्रण है, जो नारी भावनाओं को सामाजिक-सांस्कृतिक आधार देता है।

आधुनिक युग में कजरी तीज का स्वरूप

कजरी तीज

शहरीकरण और डिजिटल फेस्टिवल:
अब बड़े शहरों में महिलाओं के लिए कजरी तीज ‘कल्चरल सेलिब्रेशन’ बन चुकी है। विभिन्न सोसाइटीज़ में “Women-Only Teej Fest”, Teej Queen Competitions, कजरी सिंगिंग इवेंट्स का आयोजन होता है।

सोशल मीडिया की भूमिका:
Instagram और YouTube पर ‘Kajari Teej Look’, ‘Teej Outfit Ideas’, और ‘Vrat Recipes’ जैसे ट्रेंड्स चलते हैं। महिलाएं अपनी पूजा, झूला, सजावट की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा करती हैं।

कजरी गीतों का रीमिक्स और रिवाइवल:
आजकल कई कजरी गीतों को नए रूप में पेश किया जा रहा है, जिसमें पुराने फोक म्यूजिक को इलेक्ट्रॉनिक मिक्स से सजाया जाता है। इससे युवा वर्ग भी इनसे जुड़ रहा है।

पर्यटन और सांस्कृतिक गतिविधियां: भारत दर्शन के रंग

कजरी तीज

1. मिर्जापुर का कजरी महोत्सव:
हर साल सावन में मिर्जापुर में “कजरी महोत्सव” होता है जिसमें लोक गायक, कलाकार और श्रोतागण दूर-दूर से आते हैं। यह महोत्सव उत्तर प्रदेश सरकार भी प्रमोट करती है।

2. कोटा और जयपुर की तीज यात्रा:
कजरी तीज के समय राजस्थान में स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा मिलता है। विदेशी सैलानी भी लोकनृत्य, मेले, और रंगबिरंगी साज-सज्जा को देखने आते हैं।

3. सांस्कृतिक संरक्षण की दिशा में प्रयास:
भारत सरकार और राज्य सरकारें अब इन त्योहारों को Intangible Cultural Heritage के रूप में दर्ज करवा रही हैं, जिससे इनका अस्तित्व आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहे।

कजरी तीज 2025 का विशेष संदेश

इस पावन पर्व का सार यही है कि विवाह केवल एक सामाजिक बंधन नहीं, बल्कि आत्मिक मिलन है। कजरी तीज हमें यह सिखाती है कि प्रेम, वफादारी और एक-दूसरे के प्रति सम्मान वैवाहिक जीवन के सबसे बड़े स्तंभ हैं।

कजरी तीज 2025 का यह शुभ अवसर न केवल पूजा-पाठ और व्रत का पर्व है, बल्कि यह भक्ति, प्रेम और अटूट विश्वास का उत्सव है। चाहे आप विवाहित हों या अविवाहित, यह पर्व आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, प्रेम और खुशहाली लेकर आता है। कजरी तीज सिर्फ एक व्रत या पर्व नहीं है, यह भारतीय लोकसंस्कृति की जीवंतता, महिलाओं की आस्था, प्रेम और त्याग का उत्सव है। बदलते समय में भी यह पर्व अपनी “Cultural Charm” को बनाए हुए है — चाहे वह कजरी गीतों की मिठास हो, सावन की रिमझिम में झूला झूलने की बात हो या डिजिटल जमाने में इसका नया स्वरूप।

इस बार जब आप कजरी तीज का व्रत करें, तो पूरे मन, आस्था और श्रद्धा से करें — क्योंकि यही इस पर्व का असली संदेश है।

ये भी पढ़ें: Trump ने भारत पर 50% Tariff- लगाया! कहा – “रूसी तेल खरीद रहा है भारत”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *