उत्तरकाशी और पौड़ी में Cloudburst Tragedy: 4 की मौत, 100 लापता, राहत कार्य तेज

उत्तराखंड में उत्तरकाशी के बाद पौड़ी जिले में बादल फटने से तबाही। उत्तरकाशी में 4 की मौत, लगभग 100 लोग और सैनिक लापता, 130 सुरक्षित बचाए गए। पौड़ी में 3-4 नेपाली मजदूर घायल, राहत कार्य जारी।
लखनऊ 6 अगस्त 2025: 5 अगस्त 2025 को उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में धाराली और हरसिल घाटी में बादल फटने से अचानक फ्लैश फ्लड व भूस्खलन हुआ।
इस आपदा में कम से कम 4 लोगों की मौत हुई, लगभग 100 लोग लापता हैं और अब तक 130 लोग सुरक्षित बचाए गए।
राहत-कार्य में एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, आईटीबीपी, और भारतीय सेना ने युद्ध-स्तर पर योगदान दिया। उस क्षेत्र में 8–11 भारतीय सेना के जवान (1 JCO सहित) भी लापता है; इनमें कई घायल मिले हैं और कुछ अभी भी रेस्क्यू टीम तलाश रही है।
इस संकट की स्थिति में, भारत सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन और सशस्त्र बलों के समन्वय ने बचाव कार्यों को प्रभावी और त्वरित बनाया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों लगातार स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं।
पौड़ी जिले में नई त्रासदी – नेपाली मजदूरों पर मलबा

उत्तरकाशी संकट के बीच पौड़ी जिले के सारसों चौथान, थलीसैण विकास खंड में भी बादल फटने की घटना घटी।
घटना के अनुसार, सड़क किनारे नेपाली मजदूरों का एक अस्थायी टेंट था, जिसमें अचानक मलबा गिरने से 3–4 मजदूर घायल हुए।
गांववालों ने समय रहते उन्हें मलबे से बाहर निकालकर पास ही स्थित एक स्कूल में आश्रय दिया, जहाँ प्राथमिक चिकित्सा की गई।
कुछ नेपाली मजदूर अब भी मलबे में दबे होने की आशंका जताई जा रही है और बचाव कार्य अभी तक चल रहा है।
कल्याणी नदी उफान पर – बाढ़ से त्राहि-त्राहि

पिछले दो दिनों से हो रही भारी बारिश ने कल्याणी नदी को उफान पर ला दिया।
जगतपुरा, आजादनगर, भूतबंग्ला जैसे मोहल्लों में बाढ़ का पानी 5 फीट तक भर गया। कई परिवारों को अपने घरों की छतों पर रात गुजारनी पड़ी।
सुबह होते ही लोग घरों से बाहर निकल गए और प्रशासन ने तत्काल इवेक्यूएशन और मेडिकल सहायता प्रारंभ की।
उत्तराखंड की संवेदनशीलता – प्राकृतिक जोखिम का विश्लेषण
उत्तराखंड की भौगोलिक संरचना, पर्वतीय जलवायु और अवैध निर्माण, जैसे कारकों ने इसे प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बना दिया है।
जलवायु परिवर्तन के चलते बादल फटने की घटनाएँ अधिक तीव्र एवं अचानक हो रही हैं। क्रूर पर्यटन दबाव, नदियों के किनारे अवैध ढांचे व इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण इन आपदाओं को और व्यापक बनाता है।
राज्य में भूस्खलन, अतिवृष्टि और बाढ़ की पूर्व चेतावनी प्रणाली अभी कमजोर है। उत्तरकाशी जैसे अल्पसंख्यक क्षेत्र में वन कटान और भूमि क्षरण की समस्या बढ़ रही है, जिसने प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर दिया है।
क्षेत्रीय प्रतिक्रिया और राहत प्रयास
- स्थानीय स्वयंसेवी संस्थान और ग्रामवासी राहत कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं।
- प्रभावित व्यक्तियों के लिए विशेष हेल्पलाइन नंबर जारी किए गए हैं; मोबाइल नेटवर्क बाधित होने पर परंपरागत सूचना माध्यमों का उपयोग किया जा रहा है।
- मेडिकल टीम लगातार प्रभावित क्षेत्रों में तैनात है और प्राथमिक स्वास्थ्य सहायता उपलब्ध करा रही है।
- प्रशासन कई राहत शिविरों की स्थापना कर रहा है, जहाँ भोजन एवं दवाई उपलब्ध कराई जा रही है।
अत्यधिक वर्षा और आपदा रुझान – आकड़ों की समीक्षा
उत्तराखंड के पिछले 10 वर्षों में बादल फटने से जुड़ी बड़ी घटनाओं की आवृत्ति में निरंतर वृद्धि हुई है।
2013 के उदयपुर-नैनीताल बादल फटने, 2021 के हिमाचल और 2023 के केरल-तेलांगाना में बादल फटने की घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि छोटे-छोटे घाटियों में अचानक हुई अत्यधिक वर्षा ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव है।
इन घटनाओं ने पर्यावरणीय जागरूकता व आपदा पूर्व तैयारी पर जोर देने की जरूरत की ओर संकेत किया है।
Uttarakashi और Pauri की आपदा स्थिति – आंकड़ों में
घटना | विवरण |
---|---|
उत्तरकाशी क्लाउडबर्स्ट तिथि | 5 अगस्त 2025 |
उत्तरकाशी में मृतक | कम से कम 4 |
उत्तरकाशी में लापता कुल | लगभग 100 |
उत्तरकाशी में लापता सैनिक | 8–11 (1 JCO सहित) |
उत्तरकाशी में बचाए गए लोग | लगभग 130 |
पौड़ी में घायल नेपाली मजदूर | 3–4, कुछ अभी मलबे में |
प्रभावित जिले | उत्तरकाशी और पौड़ी |
आगे क्या किया जाना चाहिए?

उत्तराखंड में ऐसी आपदाओं की पुनरावृत्ति से बचने के लिए निम्न कार्य अत्यावश्यक हैं:
- बेहतर आपदा सूचना प्रणाली, जैसे वार्मिंग सेंसर और रडार आधारित अलर्ट
- पहाड़ी इलाकों में नियंत्रित पर्यटन विकास तंत्र
- नदी किनारे अवैध निर्माण पर रोक
- Gram और Village स्तर पर आपदा प्रतिक्रिया शिक्षा
- वन कटान पर नियंत्रण एवं पुनःवनीकरण योजनाओं का क्रियान्वयन
उत्तरकाशी और पौड़ी में हुई प्राकृतिक आपदाएं बेहद चिंताजनक हैं। चार लोगों की मौत, सौ लोगों का लापता होना और कई नेपाली मजदूरों की चोटें इस आपदा की गंभीरता को दर्शाती हैं। राहत ऑपरेशन युद्धस्तर पर प्रभावी रूप से संचालित हो रहा है, लेकिन भौगोलिक और जलवायु जोखिमों से निपटने के लिए ठोस योजना बनाना अत्यावश्यक है।
इस अनुभव से मिली सीख, भविष्य की प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में न केवल प्रशासन बल्कि स्थानीय समुदायों और स्वयंसेवी संस्थानों की भूमिका को मजबूत कर सकती है।
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